क्या आपने '' अब सौप दिया इस जीवन क mí , दीक्षा ग्रहण करते हैं, परन्तु फिर भी संशय करते हैं, आप में से कई 30-35 साल सेatar तो जन्म-जन्मांतर का है। तो जो रिश्ता इतना पावन है, इतना अटूट है, जो न mí.
गुरू अपने शिष्यों को स्वयं का ही अंग मानते हैं, अपने प्राण, ज्ञान, चेतना की ऊर्जा अपने शिष्य में प्रज्जवलित करते हैं अपने बच्चो से, अपने परिवार से भी अत्याधिक प्रेम करते है, तो एक शिष्य का भी दायित्व बनना है कि वे अपने गुरू पर विश्वास रखे व अपनी चिंताओं को आस्था में परिव¢ आप अपने विश्वास को, आस्था को, निष्ठा को, श्रद demás को इतना छोटा न करो क्योंकि आप जीवन की अहम चीजोatar यह विश्वास स्वयं पर नहीं है, कि आप अपनी पूर्ण श्रद्धा, आस्था, निष्ठा अपने गुरू को सको।।।।।।।।।।।।।।।।। आपक sigue विश p.
गुरू तो आपका साथ कभी नहीं छोड़ेगे पर यह निर्णय आपको लेना है कि आपको उठना है कि नहीं, आगे बढ़ना है कि नहीं !!
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Vineet Shrimali
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