इसीलिये जीवन के परम ज्ञान की खोज हुई, लेकिन हम उसकी चû च ही करने में समय को व्यतीत करते ही हते हैं, उसे में में में आत्त क विच razón तो कोई ¢ नहीं मिलती मिलती, यदि हम निर्णय भी कर लेते है तो पैर उठने लिये कोई कोई दिशा नहीं सूझती, हमें कोई सही मार्ग नहीं प पाता। क्योंकि सत्य इतना गहन है, इतना सूक्ष्म है कि हम आशा करना ही छोड़ देते हैं, हम हार मान जाते हैं, कि उसे जीवन में उत va जा सकेगा।।।।।। Fija।।।. फिर हम अपने आपको धोखा देने के लिये हम चर्चा करके मन को समझा लेते हैं।।।।।।।
इसकी चरorar. बुद्धि भर जायेगी शब्दों से, सिद्धांतों से, हृदय खाली रह जायेगा और भरी बुद्धि और खाली हृदय जितनीरनाक स्थिति है से लिय लिय मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने मैंने कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि. होता। भरी बुद्धि से लगता है भर गया मैं, जब कि भीतर सब रिक्त, कोरा, दीन और दरिद् pod होत है।।।।।।।।।। बुद्धि से जितन mí
इसके विपरित जो व्यक्ति सत्य की खोज व ज्ञ Chr. उस व्यक्ति को बदलाहट आवश्यक नहीं है- वह व्यक्ति जैस mí लेकिन अध्यात Estamente सत्य को समझने के लिये, उसके ज्ञान को पाने के लिये व्यक्ति को नींद नींद से उठना पड़ता है तो चेतना दूसरे आयाम में में प्रवेश करती है संन वह्यक संस संस संस नींद से जग जग स स फलित तो है।। य य य फलित फलित है होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत होत. संन्यास का अर्थ इतना ही है कि कोई व्यक्ति अब संसार को निद्रaga के भांति चलाने को तैयार नहीं है, अब वह जागकuestos से सतutar हम सभी चाहते हैं जीवन में आनन्द हो, लेकिन बिना पीड़ा के चाहते हैं, इसलिये आनन्द कभी फलित होत होता, हम आनन आनन्द की प्रagaति के कीमत कीमत चुक को भी तैय तैय तैय नहीं हम हम बचन बचन च। कीमत चुक चुक को भी तैय नहीं क क पीड़ बचन बचन च।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।.
यह कभी नहीं हो सकत mí यह नहीं हो सकता, इसका कारण है कि हम जो भी अब तक हैं— उसे तोड़ना पड़ता है, उसे मिटाना पड़ता है, उसे हटाना पड़ता है- नये के जगह बन बन बन को को को को को को को को को को को को लेकिन जब कोई कोई व्यक्ति अपने आपको नया जन्म देता है, तब कोई और चीज को वह जन्म नहीं दे η endr. है और समापutar
यह विद्या जिसमें हम अपने आपको मिटाकर, समाप्त कर नया जन्म लेते हैं।।।।।।। यह कोई सरल क्रिया नहीं है। यह क्रिया निरन्तर अथक प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो पाती। इस नये जन्म की क demás िय को सम्पन्न करने के लिये हमें अपने गुरू की आवश्यकता होती है।।।।।।। जो हमें अपने ज्ञान व चेतना के माध्यम से नये जीवन के निर्माण में सहायता प्रदान करते है और हमारे रूपान्तरण की क्रिया में होने वाली पीड़ा को सहन करने की शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे हमें शुद्ध जीवन की प्राप्ति हो और हम जीवन के सत्य को समझ सकें। गुरू के सानिध्य में ही हम ominó अर्थात हमे इस पथ पर अग्रसर होने के लिये गुरू के साथ की आवश्यकता है।
गुरू से सीखना नहीं पड़ता, गुरू के साथ होना काफीॹ पर सीखना सरल है और साथ होना थोड़ा मुश्किल, क्योंकि सीखने में तो बहुत बहुत दूर खड़े होकecer. परन्तु साथ होने के लिये तो बहुत निकटता चाहिये, एक आंतरिकता चाहिये- एक भरोसा, एक गहरी श demás जguna ध प क प प razón गुरू आपके जीवन को रूपान्तरण कर XNUMXकते
जब व्यक्ति अपने आपको पूर्ण रूप से गुरू को समर्पित कर देता है जब उसमें गुरू के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना जाग्रत हो जाती है तब उस शिष्य के साथ गुरू चलते हैं और गुरू के साथ शिष्य को चलना पड़ता है और बहुत बार गुरू को ऐसे रास्ते पर चलना पड़ता है, जिस पर उसे चलना नहीं चाहिये थ mí गुरू स्वयं को भी उस स्थिति से सामना करते हैं जिस स्थिति से शिष्य को सामना करना पड़ता है।।।।।।।
गुरू अपने शिष्य के लिये ये सब इसीलिये करते है कutar का हाथ, हाथ में लेकर। कई बार तो गुरू को उस यात्र पर भी थोड़ी दूर तक शिष्य के साथ जाना पड़ता है, जहां मलिनता, नर posterir क्योंकि गुरू हाथ पकड़कर शिष्य के साथ थोड़ी दूर चलता है, तो उसमें इतना भरोसा पैदा हो जाता है कि कल अगर गुरू शिष्य अपने ज र पguna पर लेकर चले तो गु के स स स स चलत।। ।timo परentas लेक चले वह के के स स स चलत।।।।। स N -
अतः जीवन के सतutar इसलिये शिष्य को हमेशा अपने गुरू के लिये समर्पण होना चाहिये क्योंकि जीवन को पूर्णतendr
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