जीवन क्षण भंगुर है, नाशवान है, और धीरे-धीरे काल उस को अपने जबड़ों में फंसाता हुआ शरीर को समाप्त कर देता है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है uto देह को समाप्त करने की क्रिया यमराज की है। परन्तु अक्षर और उनसे रचित स्तोत्र एवं ग्रंथ कालजयी होते हैं क्योंकि वे स्तोत्र काल के भाल पर विराट ¢ में अंकित हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं होते होते होते होते होते होते होते होते eléctrico eléctrica वे स्तोत्ominor ये श्लोक ऐसे ही होते हैं जैसे कि एक सुगंध ने पूरे वायुमंडल में अद्वितीय अष्टगंध से इन श्लोकों को अंकित किया हो।।
ये श्लोक ऐसे भी होते हैं कि काल की छाती पecer यह उसके बस की बात नहीं होती होती, क्योंकि अक्षर दो प्रकार के हैं हैं हैं शब्द दो प्रकार के होते हैं हैं हैं हैं प प प प इस इस इस कुछ को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को को हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. प्रकार से पूरे ब्रह्मांड में अंकित करते हैं जो किसी भी दृष्टि से मिटाये नहीं जा सकते।।।।।।।।
प्रयत्न तो प्रत्येक क्षण करता है। यमराज नहीं चाहता कि कोई वस्तु जीवित रहे, यमराज नहीं चाहता कि यह शरीर लम्बे समय इस पृथ्वी पर विचरण करे। यमराज इस बात को भी नहीं चाहता कि ग्रंथ अपने आप में गतिशील हों।। परन्तु सामान्य प्राणी यमराज से मुकाबला नहीं कर पाते, संघर्ष नहीं कर पाते और उनके ये अक्षर धूमिल हो जाते हैं, धीरे-धीरे काल उन अक्षरों को, उन पंक्तियों को समाप्त कर देता है और यह देश, यह विश्व उन पंक्तियों से वंचित रह जाता है। परन्तु ये पंक्तियां क mí नहीं होती जो यमराज ललाट को डसने में आबद्ध हो, ये पंक्तियां वैसी नहीं होती कि यमराज की छाती पर पद प्عaga कर उनको लिखा जाये।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ज ज ज ज dos
ये पंक्तियां ऐसी भी नहीं होती हैं जिन्हें आने वाली पीढि़य sigue. ऐसी पंक्तियां तो वह लिख सकता है जो होता कालजयी पु ऐसे स्तोत् Prod. ऐसे ग्रंथ वह विद्वान रच सकता है, जो अपने आप में इस विश्व से, इस काल से, यम से संघivamente कर इस ब बguna को को सिद्ध कर है सम कि पella क पंक पंकella. , मिटा नहीं सकता। परन्तु ऐसे पुरूष बहुत कम होते हैं, सैकड़ों हजाocar lado , पृथ्वी पर छोटी-छोटी बूंदों के माध्यम से अंकित कर देता है, फूलों को पराग-कणों की भांति स्थायित्व दे देता है और विश बन बन बन भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी भी ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष ेष में अमिट होता है।
यदि उसकी तुलना ही कर दी जाये यदि यदि, उसके समान और किसी ग्रंथ की या श्लोक की रचनendr नश्वर देह में (भी) होते हैं। परन्तु इस प्عaga के पदों में, इस प्रकार के स्तोत्रों में महाप्रagaण होते।।।।।।।।।।।।।।। और महाप demás को यमराज स्पर्श नहीं कर पाते, महाप्रija को संसार विस्मृत नहीं कर पाता। क्योंकि मह sigue. वह युग धन्य हो उठत mí काल के भाल पर अपना नाम अंकित करने व mí हो, विष्णु लोक हो, भगव siguez
ऐसे युग पुरूषों को युग प्रणम्य करता है, ऐसे युग पुरूषों को दिशाये सिर झुका कर वर मालाये पहनाती हैं, दसों दिशाये ऐसे व्यक्तित्व का श्रृंगार करती हैं आकाश छाया की भांति उस पर झुककर अपने आप को सौभाग्यशाली समझता है और जहां-जहां भी उनके पैर बढ़ते हैं पृथ्वी स्वयं खड़ी होकर नतमस्तक हो जाती है, प्रणम्य हो जाती है और इस बात का अनुभव करती है कि वास्तव में ही मेरे इस विराट फलक का, मेरी इस विराट पृथ्वी का वह भाग कितना सौभाग्यशाली है, कि जहाँ इस प्रकार के युग पुरूष ने चरण चिन्ह अंकित किये। प्रकृति निरन्तर इस बात के लिये प्عecer प्रत्येक युग इस बात का चिंतन करता है कि ऐसे अद्वितीय व्यक्तित्व का प्रagaदुर्भ भ होर यह निश्चित है कि कई-हज पु razón
साधारणतः एक अनुभव होता है कि एक पुरूष ने जन्म लिया, ऐसा विश्वास होता है कि देह धाnas ऐसा अनुभव होता है कि जैसे सैकड़ों सैकड़ों, हजारों, लाखों व्यक्ति जन्म लेते हैं और निरन्तर गतिशील होते क • के गर्भ में समा जाते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं. परन्तु प्रश्न यह उठता है कि काल में क्या इतनी क्षमता होती है कि ऐसे व्यक्तियों को, ऐसे युग-पुरूषों को उद्धृष्ट कर सके? क्या यह संभव हो सकता है कि काल की ढाड़ों में ऐसे व्यक्तित्व समाहित हो? यह संभव नहीं है!
ऐसा संभव हुआ ही नहीं है- इसलिये कि ऐसे युग-पुरूष क mí करती रहते हैं। मेघ अपनी बूंदों के माध्यम से इस बात का एहसास करता है कि वास्तव में ही यह एक अद्वितीय व्यक्तित्व है।।।।।।।।।।।।। इन्द्र स्वयं इस बात से ईर्ष्या करता है कि ऐसे महापुरूष के पैरों के नीचे जो रजकण आ गये हैं वे रजकण धन्य हैं, हीरे-मोतियों से भी ज्यादा मूल्यवान हैं, माणिक्य और अन्य रत्नों से भी ज्यादा श्रेष्ठ हैं क्योंकि उन रजकणों में सुगंध होती है , उन रजकणों में एक विर marca होती हैं हैं, उन रजकणों में एक अद्वितीयता होती है और उस अद्वितीयता को प्रaga क कguna क के लिये योगी, यति, संन्य को ल दिख दिख ela। त noya भले ही वे गोचर या अगोचर हो, भले ही वे इस पृथ्वी पर गतिशील होते हुये अनुभव नहीं होते।।।।।।।।।।।।
परन्तु उसमें और इस प्रकार के युग-पुरूष में एक बहुत बड़ा अंतर होता है जिस अंतर को काल मिटा नहीं सकत सकत सकत यम यम सम सकतguna पु हुये भी अगोच razón. , अगोचर होते हुये भी गोचर वह दिखाई देते हुये भी नहीं दिखाई देता है और वह नहीं दिखाई देते हुये भी दिखाई देता है, कutar । वह इसके अंदर, बहुत अंदर उतरकर उन प्रagaणमय कोषों में समाहित होता है कि कि होते हुये भी नहीं दिखाई देते हैं।।।।।।।।।।।।।
वह व्यकorar उसकी गति को कोई अवरूद्ध नहीं कर पाया, उसकी गति को आक mí उसकी गति को दसों दिश siguez
क्योंकि वह गति नहीं है वह एक चेतना है, वह एक प्रकाश पुंज है, एक ज्योति है, वह जीवन की एक अद्वितीयता है, वह इस पृथ्वी का सौन्दर्य है, वह इस युग का अन्यतम श्लाका पुरूष है, वह इस आकाश की एक अद्भुत सौन्दर्य युक्त गहराई है और यदि ब्रह्मा स्वयं आकाश की ओर उड़े भी भी ऐसे श्लाका पुरूष कर सिर कहाँ तक है, इसको न नहीं त तो पद में की चिन चिन चिन चिन N. चिन की चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन चिन की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की की थाह नहीं ले पाते। इतने अद्वितीय युग-पु compañía जो दृश्यमान होते हुये भी अदृश्यमान है, जो दिख mí श्रेष्ठता है, दिव्यता है, तेजस्विता है और वह सब कुछ है इस इस पृथ्वी पर हजारों-हजारों वर्षों से लिखा गया है। है है है है है है है है है है है है है है है है है है है
उसके चेहरे पर एक तेजस्विता है, आभामंडल है, उसकी आँखो एक अथ gas उसके ललाट की भृकुटि तीनों लोकों को दृश्य करती रहती है और उसके भाल पर जो त्रिवली होती है वह ब्रह्म लोक, विष्णु लोक और ूद ूद लोक की की्य caso ámaraय क है है है।। ये तीनों रेखाये सत्व, रज, तमस गुणों का विशुद्त ऍॣह ये तीनों पंक्तियां उस व्यक्ति की विर marca टत को स्पष्ट करती हैं, क्योंकि ये पंक पंक्तियां जहाँ उसके मस्तक पर अंकित होती हैं, वहीं तीनों दृश पंक दृश uto तिय ग ग ग ve ella प razón इसलिये साक्षात सरस्वती स्वयं उसके कंठ में बैठकर अपने आप को गौरवशाली अनुभव करती है क्योंकि उसके कंठ में काव्य इसी प्रकार से स्थिर होते हैं जिस प्रकार से इस पृथ्वी के गर्भ में लाखों करोड़ों रत्न अदृश्यमान हैं और ग्रीह्ना की इन तीन पंक्तियों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में ही वह युग-पुरूष है।
ललाट की इन तीनों पंक्तियों के माध्यम से ही उच्च कोटि के योगी, यति और संन्य Chr. के लिये ही इस पृथ्वी पर अवतरित हुआ है।
देवता, कोई ऐसा शब्द भी नहीं है कि जिसके बारे में हम चौंके, जिसके बारे में हम नवीन धारणा बनायें। देवता ठीक वैसी ही योनि हैं जैसी गंधर्व योनि है, जैसी भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस, किन्नर, अप्सisiones योनियां है।।।।।।।।।।।।।।।।। उन गोचर और अगोचर योनियों में देवता भी एक योनि है, जो नहीं दिखाई देते भी भी दिखाई देते।।
वेदों ने, देवताओं का वर्णन किया है। वहाँ कुछ देवता दृश्यमान हैं- अग्नि देवता, वायु देवता, सूर्य देवता, चन्द्रमा देवता- जिनको हम नित्य देख पाते हैं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। परन्तु कई देवता ऐसे हैं जिनको हम स्थूल आँखों से नहीं देख पाते जैसे- इंद्र हैं, मरूद गण है, ब्रह tercadero हैं, विष्णु हैं, महेश हैं, मह marca हैं, छिन्नमसل हैंر ।guna तguna तguna तguna तguna तguna त तguna त त त तella त तguna. इन दोनो प्عaga की देवियों और देवताओं में कोई अंतर नहीं है। अंतर है तो केवल इतना कि जब तक अंतः करण में दीपक प्रज्जवलित नहीं होता, तब तक अंदर ज्ञान की चेतना जाग्रत नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जब तक आत्म चक्षु पूरorar
ठीक इसी प्عaga से ऐसे अवतरित उच्चकोटि के योगियों को भी हम देख नहीं पाते। बस यही अनुभव कर पाते हैं कि यह पांच या छः फुट का व्यक्तित्व है, यह अनुभव कecer. परन्तु क्या ऐसे व्यक्तित्व का मूल्य वजन से, लम्बाई से, या चौड़ाई से किया जा सकता है? यह तो स्थूल आँखे हैं, स्थूल नेत्र हैं और वे नेत्र कुछ भी देखने में समर्थ नहीं।।।।।।।।।।। जिस प्रकार से हमारे नेत्र ब्रह्मा को साक्षात् नहीं देख पाते, विष्णु के साक्षात् दर्शन नहीं कर पाते, रूद्र की अद्वितीय गतिविधियों को समझ नहीं पाते उसी प्रकार उन नेत्रों के माध्यम से ऐसे उच्चकोटि के योगियों के आत्म को भी नहीं देख पाते उनकी विराटत्म को भी नहीं देख पाते, उनकी विशालता को भी अनुभव नहीं काथप
और मनुष्य तो एक साम्य व्यक्तित्व है वह व्यक्ति सामान्य है जो उत्पन्न होता है और मृत्यु के गर्भ में समा जाता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है तidencia है है है है. वह व्यक्ति सामान्य है जो योनिज होता है और एक दिन श्मशान में जाकर सो जाता है, वह व्यक्ति सामान्य है जो जन्म लेता है और उसको किसी प्रकार का कोई भान नहीं होता और निरन्तर समाप्त होने की प्रक्रिया में गतिशील होता है। ऐसे मनुष्यों का कोई मूल्य नहीं होता। युगऐसे मनुष्यों का अभिनन्दन नहीं करता। आकाश ऐसे व्यक्तियों के चरणों में अपना सिर नहीं झुकाता, पृथ्वी ऐसे व्यक्ति के चरणों के प्रति नमन नहीं हो पाती। परन्तु सम्पूर्ण प्रकृति युग-पुरूषों का अभिनन्दन करती है, क्योंकि ये केवल मात्र व्यक्तित्व नहीं होते अपितु सम्पूर्ण युग को समेटे हुये एक विराट व्यक्तित्व होते हैं, जिनको देखने के लिये, स्पर्श करने के लिये, अनुभव करने के लिये देवता-गण भी तरसते रहते हैं।
देवता और मनुष्य, गंधर्व और यक्ष, किन्नर और अद्विय ये इस इस बात के ल लija ल हते हैं वे इस पृथ्वी पर अवतरित हों वे द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द. कर सकें। परन्तु यह संभव नहीं हो पाता क्योंकि देवताओं में इतनी सामर्थ्य होती कि कि वे जन्म ले सकें, देवताओं में वह क्षमता नहीं हो प पguna कि वे इस पृथ पृथ ° पû अवत अवत हो।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। उन देवताओं में यह विशेषत mí
यह एक कठिन कार्य है, यह काटों भरा कार्य है, यह ठीक वैसा ही कारtern. यह एक ऐसा ही कार्य है जहां घटाघोप अंधकार में भी प्रकाश बिंदु बनकर दृश्यमान हो।।।।।।।।।।।।।।। देवताओं में इतना सामantemente हमने उनको देवता शब्द से संबोधित किया है और देवता का तात्पर्य है जो कुछ प्राप्त करने की क्रिया करते है वह देवता है और वह देवता प्राप्त करता है इस देह धारी मनुष्य से जप-तप, पूजा-पाठ, ध्यान, धारणा, समाधि, स्तोत्र और विभिन्न प्रकार के मंत्रों का उच्चारण।
क्योंकि देवता का तात्पर्य ही लेना है, स्वीकार का का ¿Está bien? शास्त्रों में ऐसा विधान नहीं है। देवता ऐसा प्रदान नहीं कर सकते क्योंकि उनके नाम से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि वे केवल लेने की क्रिया जानते हैं, स्वीकार करने की क्रिया जानते हैं, प्राप्त करने की क्रिया जानते हैं परन्तु प्रदान करने की क्रिया का भान उन्हें नहीं होता।
जिस प्रकार से चन्द्रमा स्वयं प्रकाशवान नहीं है, वह सूर्य के प्रकाश से दीप्यमान है।।।।।। यदि सूर्य नहीं है तो चन्द् porte ठीक उसी प्ηaga देवताओं का आधार बिंदु ऐसे उच्चकोटि के युग-पुरूष होते जो इन इन देवताओं से ऊपर हैं हैं हैं जिनकी देवत अभgon. का प्रकाश, देवताओं के द्वारículo प्रदान करने की क्षमता इस प्रकार के उच्चकोटि के ऋषियों और महापुरूषों के म माध Dav.
इस प्रकार के महापुरूष इसलिये पृथ्वी पर अवतरित होते हैं कि देवता लोग इस पृथ्वी पर विचरण करने के लिये लालायित होते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। वे इस बात को अनुभव करना चाहते हैं कि दुःख क्या है, सुख क्या है, हर्ष क्या है, विषाद क्या है, प्रेम क्या स एक एकguna स स सella स स सella स मीप मीपella. ये संचारी भाव देवत siguez ऐसा वरदान तो केवल मनुष्य जाति को ही मिल mí और जहां प्रेम है जहां हर्ष है वहां विषाद भी है, जहां मिलन है वहां विरह भी है वह वह तड़फ तड़फ है वह बेचैनी सौन यह तडफ तडफ द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द द य य य य य य य य य वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग वियोग — — वियोग वियोग वियोग — — — सौन्दरorar जब तक सम sigue. जिसमें विविध ¢ होते हैं हैं, विविध आयाम होते हैं, विविध श्रेष्ठता होती है और विभिन्नता होती है उस विविधता को सौन्दacion -कहते।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
प्रत्येक देवता सौन्दर्यवान बनना चाdos यह सब मनुष्य के द्वाisiones क्योंकि जो उत्पन्न होता है उसका नाश अवश्यंभाहै जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्XNUMXित परन्तु कुछ महापुरूष, कुछ अद्वितीय पुरूष, कुछ युग पुरूष ऐसे होते हैं, जो मृत्यु की पर नहीं चलते अपितु अमृत के सendr. वे युग-पुरूष पृथ्वी पर नहीं चलते अपितु वायुमंडल पर अपने चरण-चिन्हों को छोड़कर गतिशील होते हुये अगतिशील अगतिशील रहते हैं, क्योंकि सामान्य व्यक्व ऐसे युग-पुरूषों को समझ प प प razón
ऐसा लगता है कि जैसे किसी मां के गर्भ से जन्म लिया हो, ऐसा लगता है कि जैसे म • के गर्भ में महीने महीने महीने महीने क किय प लगत है है के के के के के के के vendd परन्तु ऐसा अनुभव ही होता है। वास्तविकता कुछ और ही होती है। उसके गर्भ में केवल उतना ही वजन ¢ हत है जितना एक गुलाब के पुष्प का होता है।।।।।। भगवान सदाशिव जब पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे औecergl. एक भी प्राणी वहां रहा नहीं क्योंकि जगत-जननी पार्वती के हठ की वजह से औढरदानी भगवान शिव उसे अमरत्व का ज्ञान देना चाहते थे, उसे बताना चाहते थे कि किस प्रकार से अमरत्व प्राप्त किया जा सकता है उसे बताना चाहते थे कि किस प्रकार से व्यक्ति जन्म लेकर के मृत्यु के गर्भ में समाहित नहीं होता, उसे बत mí.
परन्तु ऐसा ज्ञान प्रत्येक प्रagaणी को तो दिया जाना संभव है।।।।।।।।।।।।।।।। तब तो इस सृष सृष्टि पर करोड़ों-करोड़ों व्यक्dos tern. इसलिये व्यक्ति जन्म लेत mí इसी उद्देशorar , पतंग, पशु और पक्षी रहे ही नहीं और जब ऐसा भगवान शिव ने अनुभव किया तो अमरनाथ के पास स्वयं अमृत्व बनकर सदाशिव अद्वितीय हुये जिसे अमृत्व कहा जाता है जिसके माध्यम से जरा मरण से रहित हो जाता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अयोनिज बन जाता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति वृद palar वृद की ओर गतिशील गतिशील नहीं हो पाता, जिसके माध्यम से व्यक्ति काल की ओर नहीं जा पoque।।।।।।। veg.
जब ऐस mí उस समय एक कबूतरी और एक कबूतर बैठे हुये थे और डमरू के नाद से दोनों दोनों उड़ गये गये पatar अमर कथा प्र sigue. कुछ ही समय ब siguez उन्होंने त्रिशूल फेंका और वह कबूतर वहां से उडा़़े
उसी समय वेद व्यास की पत्नी भगवान सूenas को को अर्घ्य दे रही थी। मंत्र उच्चाisiones सदाशिव वेद व्यास के घर के बाहर त्रिशूल गाढ़कर बैठ गये कि जब भी यह व्यक्ति, यह बालक बाहर निकलेगा तभी इसको समाप्त करना आवश्यक होगा क्योंकि इसने उस गुप्त विद्या को समझ लिया है जो कि अत्यंत गोपनीय है। इस प्रकार इक्कीस वर्ष बीत गये। बहुत बड़ी अवधि! अंदर जो शिशु गतिशील हो रहा था, उसने मां से पूछा- 'अगर मेरे भार से तुम व्यथित हो रही हो तो मैं बाहर निकल सकता हूँ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica भगवान सदाशिव मेरा कुछ भी अहित नहीं कर सकते क्योंकि मैं उस अमरत्व को समझ चुका हूं। '
वेद व्यास की पत्नी ने कहा- 'गुलाब के फूल से भी कम वजन मुझे अपने पेट में अनुभव हो हो ¢ ह।।' ठीक उसी प्عaga जो अवतरित होते हैं उनकी मां के गर्भ में कोई कोई वजन अनुभव होत होता। उतना ही वजन होता है जितना कि एक गुलाब के फूल का हॾ हो ऐसे प्रagaणियों का, ऐसे व्यक्तियों का जन्म कभी-कभी ही होता है, ऐसे युगपुरूष यदा-कदा ही पृथgon. विद्वत mí
देवता लोग भी मनुष्य योनि में जन्म लेकecer यह आवश्यक नहीं है कि वे सफल हो ही जाये। फिर भी देवत mí परन्तु ऐसा तब होता है जब ऐसे मह sigue.
मैंने शुकदेव की कथा के माध्यम से बताया कि वेद व्यास की पत्नी के गûendr. तैयार हूँ, क्योंकि मैं अमर कथ mí है परन्तु मेरा समापन नहीं कर सकता। क्योंकि मैंने अपने जीवन में भगवान सदाशिव, मदनान्तक त्रिपुरारी और पराम्बा जगत जननी मां पार्वती के दर्शन किये हैं और उनके पारस्परिक संवाद और परिसंवादों को सुना है, हृदयंगम किया है और मुझे यह ज्ञात हुआ है कि अमरत्व क्या है, अमर होने की कला क्या है , बुढ़ापे को कैसे परे धकेल सकते हैं, यौवन को किस प्रकार से अक्षुण्ण रखok जा सकता है और मृत्यु रूपी पाश से अपने आपको कैसे बचायाया जा सकता सकत। '
वेद व्यास की पत्नी ने जो उत्तर दिया वह अपने आप में मनन योग्य है। उसने कहा- 'तुम मेरे गर्भ में हो और इक्कीस वर्ष से नौ महीनों से नहीं, साल भर से भी नहीं, पांच वर्षों से भी नहीं, इक्कीस वर्षों से हो gres
इस प्रसंग के द्वाisiones वे योनि के द्वार से जन्म नहीं लेते। यह बात सतutar पेट में किसी प्रकार का वजन है है, उस मां को भान ही नहीं होता कि मेरे पेट किसी प प्रकाár.
उसको ऐस mí दूसरे रूप में कहे तो तंद्रaga ominal सही शब्दों में कहा जाये तो वह जगत-जननी के पारtern. में आप आप को समेट लेती।।।।।।।।।।।।।। यह क्षण ऐसा होता है जब न निद्रaga होती है है, न जाग्रत अवस्था होती तथ तथ mí उसे भान तो तब होता है जब युग-पुरूष अवतरित होकर के उसके पाisiones
वही संचारी भाव, वही चिंतन, वही प्रक्रिया जो एक मां की होती है ठीक वैसी ही क्रिया और प्रतिक hab िय का प्र marca हो वक flor उसे एहसास होता है, कि इस बालक ने मेरे गर्भ से जन्म लिया है और वही मातृत्व उसके पूरे शरीर को और मन को आच्छ Davidamente देता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। utosro जब ऐसे मह sigue. परन्तु वे आस-पास के क्षेत्र में ही जन्म लेते हैं जहां युग पुरूष अवतरित होते हैं क्योंकि उन देवताओं का चिंतन तो यह है कि वे मृत्यु लोक में रहें भी और उन भगवान एवं युग परूष की नित्य लीलाओं को देखकर के नेत्रों को सुख पहुँचा सकें , आत्मा को प्रसन्नता दे सकें और अपने जीवन को धन्य कर सकें।
इससे भी बढ़कर यह बात होती है कि वे मनुष्य योनि में जनutar और ज्यादा से ज्यादा उस युग पुरूष के पास रहने का प्रयत्न करते हैं, चाहे वे ब ब ¢ में हों, च शिशु में प razón उन सभी अप्सराओं का यह चिंतन रहता है कि वे जन्म लेकर उस महापुरूष के आस-पास विचरण करें, अपने सौन्दर्य, अपने यौवन, अपनी रूपोज्जवला, अपनी प्रसन्नता और अपनी चेष्टाओं से उस युग पुरूष के पास ज्यादा से ज्यादा वे रहने का प्रयत्न करती है ।
वे अप्सराये भी उस स्थान के आस-पास ही जन्म लेती है उनकी क्रियाये भी वैसी ही होती हैं जैसी क्रियाये देवता लोग करते हैं और वे शनै-शनै काल के प्रवाह के साथ-साथ बड़ी होती हैं, यौवनवान होती है, सौन्दर्य का आगार होती हैं और अद्वितीय बनकर उस लीला विहारी को प्रसन्न करने का प्रयत्न करती हैं और ज्यादा से ज्यादा उनकी सामीप्यता का अवसर ढूंढती रहती है, अवसर प्रagaप्त करती हैं और उन्हें प्ηenos भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी यही हुआ। जब उन्होंने जन्म लिया, या दूसरे शब्दों में कहूं कि अवतरित हुये तो सैकड़ों देवता और अप्सरículo ने आस-प fuija के क्षेत्र में ही जन्म लिया। लिय।। आस क कr.der गोपों के रूप में बालिकाओं के रूप में और कई रूपमू यही चिंतन राम के समय में हुआ। यही चिंतन बुद्ध के समय में हुआ और यही चिंतन सभी अवतारों के साथ हुआ। हमारे शास्त्रों में चौबीस अवतारों की गणना की गै
प्रश्न यह उठता है कि एक साम Dav avor सामान्य मनुष्य के पास, सामान्य बालक के पास दिव्य दृष्टि नहीं होती, कोई चेतना दृष्टि नहीं होती, कोई पूर्ण दृष्टि नहीं होती, कोई कुण्डलिनी जागरण अवस्था नहीं होती और कोई ऐसी क्रिया नहीं होती जिसकी वजह से वह ज्ञात कर सके कि यह बालक केवल बालक नहीं है अपितु एक अदutar इसके सात बिंदु शास्त् razón ;
ये चिंतन आवश्यकता है भगवती नित्य लीला विहारिणी की कृपा की, आवश्यकता है इसकी ओर चेष्टारत होने की आवश्यकता है चर्म चक्षुओं के माध्यम से समझने की क्षमता प्राप्त करने की और इस बात की चेष्टा करने कि उस युग-पुरूष के प्रति पूर्ण श्रद्धागत हों, विश्वासगत हों क्योंकि ब् Est. जहां ब्रह्म है वहां माया भी है। और माया उस व्यक्ति की आँखों पर एक परदा डाले रहती है, उसके में में संशय-असंशय का भाव जाग्रत किये हती है, उसके में विश विश्वास और अविशbar अविश की की खड़ी किये हती है है है है है है है है है है है व व व है है है है है है है है है है है है है है वह सहज ही विश्वास नहीं कर पाता कि यह व्यक्ति, यह बालक, यह शिशु शिशु यह पुरूष जो हमारे ही सम सम हंसता है, मुस्कुर marca है, ोत ोत क त razón है जैस mí
मैंने कह mí जब उसके मन में यह ज्ञात हो जाता है कि जिस बालक को मैं देख ¢ ह, जिस व्यक्ति को अपनी इन गोचर इन्दorar. भी अक्रिया है, उसके हास्य में भी एक गंभीरता है, उसकी आंखों में अथाह करूणा है, उसकी वाणी में अजसguna प्ररriba, है औ मguna टguna म लेतguna लेत लेतguna लेत लेतija है कि शिशुओं की इस भीड़ में यह बालक कुछ हटकर है एवं अद्वितीय है।
शास्त्रों ने जो चिन्ह इंगित किये हैं, वे देवताओं के लिये उन अप्सराओं के लिये, उन सामान्य मानवों के लिये स्पष्ट संकेत करते हैं कि यही युग पुरूष है, यही देव पुरूष है जिनकी सामीप्यता के लिये हम इस पृथ्वी पर अवतरित हुये हैं। प्रथम तो यह कि उसका व्यक्तित्व दूसरे व्यक्तियों की अपेक्षा हटकर होता है- उसकी लम्बाई, उसकी चौड़ाई, उसका कद, उसकाठ उसकί ।ा स razón शija श स स स स noya उस अप्सenas का सम्पूर्ण व्यक्तित्व एक अलग ढंग से आभास होता है।
दूसरा चिन्तन अथवा क्रिया (चिन्ह) यह होती है कि उसके मुख-मंडल पर एक अपूर्व तेज होता है प प्रक gaste होत।।।।।।।।।।।।।।।।।
ऐसा प्रकाश नहीं जो आँखो को चौंधिया दे। ऐसा प्रकाश भी नहीं जो आँखो को बंद कर दे, ऐसा प्रकाश भी कि कि जो आँखो को अंधेरे में ग्रस tercadero दे दे।।।।।।।।।। अपितु ऐसा प्रकाश जो अत्यंत शीतल है, जो चन्द्रमा की तरह अमृत बिंदुओं से अभिसिचित है है हैatar नहीं है। वह भले ही अनutar
परन्तु उसकी क्रिया में भी अक्रिया होती है, उसके कारorar शीतलता, तेजस्विता अथाह करूणा से भी आँखे अपने आप में इंगित कर देती हैं यह यह बालक, यह शिशु सामान्य नहीं है, यह ब ब लिक स औ लड़की औ ही ही ही स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स स. चेहरे पर तेजस्विता, शीतलता, अथाह करूणा, गरिमा, गंभीरता और पूर्णता होती है वह निश्चय ही युग-पुरूष होता है।।।।।।।
श sigue. ऐस Davelos क्योंकि उसके शब्द मात्र खोखले शब्द नहीं होते अपितु वे स्वयं ब्रह्म स्वरूप होते हैं।।।।।।। उनके प्रत्येक शब्द में चुम्बकीय आकर्षण होता है वे शब्द ऐसे नहीं होते कि सुनकर हवा में उड़ा दिजे ये वे शब्द ऐसे नहीं होते जो निáguestos होते होते हैं, वे शब्द ऐसे भी होते होते पीछे कोई कोई अर्थवता नहीं हो और इसके माध्यम से यह जाना जा सकता है कि यह निश uto ही अद युग युग पु।।।।।।।।।।।।।।।। सकतija है यह निश निश ही अद अद युग युग पु।।।।।।।।।।।
जो व्यकorar जो जो पृथ Sपृथ क उद terc होत होत है है, जो उस युग युग कaños नियंतaños होतaños है, जो उस अंधकाocar में प्र aloeste Nión युग युग युग युग युग युग युग Ny. है।
परम् पूज्य सद्गुरूदेव
Sr. Kailash Shrimali
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