तुम गुरू की तरफ पीठ किये खड़े हो, इसीलिसे परमात haber संसार की तरफ जितनी उन्मुखता होगी, उतनी प परमात haber तुम्हाisiones मुंह सिर्फ एक ही तरफ हो सकता है या तो संसार की तरफ या सद्गुरूदेव की तरफ, परमात्मा की तरफ।।।।।।।।।।।।।।।। त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त त गुरू का अर्थ है, जो तुम्हाisiones जिसका अतीत तुम्हाisiones जो परम sea से से परिचित हो, जो परमात्मा की भाषा समझता है, वह तुम्हारे और परमात्मा के बीच अनुवाद का काम कर सकता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। है है है है।।।।।।।।।।।।।। है है है है है है है है है.
गुरू एक अनुवादक है, एक ट्रagaंसलेटर, वह परमात्मा को समझता है, उसकी भाषा को समझता है, वह तुम्हे भी समझता है और तुम्ह Dav no भacho को को भी भी भी भी को को Nacho को में में त को Ndos. वह परमात्मा को तुम्हारे अनुकूल करता है, जिसके तेज से तुम अपने सांसाdas इसीलिये गुरू तुम्हें धीरे-धीरे तैयार करता है।
एक छोटे पौधे को तो सुरक्षा की जरूरत होती है। बड़े हो जाने पर किसी बाड़ की कोई जरूरत नहीं रहत॥ वह तुम्हारे छोटे से पौधे को सम्भालता छोटे से पौधे पर तो मेघ भी बरस जाये, तो मौत हो सकतै मेघ से भी बचाता है। छोटे पौधे पर तो सूरज भी ज्यादा पड़ जाये तो मृत्यु हो है है। सूरज तो जीवनदायी है, लेकिन छोटे पौधे के लिये जरूरत से ज्यादा होने पर मृत्यु हो सकती।।।।।।।।।।।।। क्योंकि छोटा पौधा उतना ग्रहण करने को, उतना आत्मसात करने को अभी तैयार नहीं।।।।।।।।।।।।।
इसीलिये गुरू की यही चेष्टा रहती है, कि वह परमात्मा को तुम्हारे योग्य और तुम्हे परमात्मा के योग्य बना दे, गुरू परमात्मा को थोड़ा रोकता है, थोड़ा ठहरने को कहता है, गुरू परमात्मा से कहता है इतनी जोर से मत बरस जाना कि यह आदमी मिट जाये। और तुम्हे भी गुरू तैयार करता है कि घबराओ मत, थोड़ी प्रतीक्षा करो, जल्दी ही वर्षा होने है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। अगर एक बूंद गिरी है, तो पूरा मेघ भी गिरेगा, घबरथओ तुम्हे तैयार करता है, ज्यादा लेने को, परमात्मा को तैयार करता है, कम देने को और जब तुम्हारे दोनों के बीच एक संतुलन बन जाता है तो गुरू का कार्य पूर्ण हो जाता है और यदि तुम गुरू के साथ सम्बन्ध ना जोड़ पाओ, तो तुम्हारी हालत ऐसी होगी, कि तुम हिन्दी जानते हो, दूसरा आदमी जापानी जानता है, वह जापानी बोलता, तुम हिन्दी बोलते हो, दोनों के बीच कोई ताल-मेल नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। objetivo एक आदमी चाहिये, जो ज sigue. पर गुरू की कृपा भी अर्जित करनी होगी। वह भी मुफ्रत नहीं मिल सकती। मुफ्रत कुछ मिलता ही नहीं और जो लोग मुफ्रत लेने की चेष्टा में हैं हैं, वे सदा भिखारी ominoso ज ज हैं, मुफ्रत कुछ भी नहीं मिलत औguna तुम गुरू को दे क क सकते सकते सकते सकते तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम तुम जो गुरू को दे सको और मुफ्रत में धर्म, सत्य, परमात्मा मिल सकते।।।।।।।।।। उसकी न्यौछावर तो देनी ही पड़ेगी, इसके लिये तुम्हें अपने आपको पूरा दांव पर लगाना पड़ेगा, तब कुछ प प्रijaप कर पाओगे।
कहा जाता है- गुरू तो स्वयं करूणा स्वरूप लेकिन वह करूणा भी तुम पर तब बरस सकती है, जब तुम तैयार हो जाओ, वह करूणा तो सदा ही गु गुरू की, लेकिन तुम तो औंधे खे घड़े हो तो तो वह प।।। भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ भ प प भ प प प प प प प प प। प प।।।।।। प।। प प।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। जब मुझे लोग शिविरों में सुनने आते हैं, तो मैं यह जानता हूं कि इसमें कुछ तो हैं हैं हैं जो घड़े की तatar । कुछ हैं, जो फूटे घड़े की तरह हैं- मुंह उनका चाहे सीधा भी डालो, छू भी नहीं पाता कि बाहर निकल जाता है।।।।।।।।।।।।। कुछ हैं, जो ड sigue " कुछ जो सधे हुये, सीधे घड़े की तरह हैं, न तो फूटे है, न उलटे हैं, न चंचल।।।।।।।।।।।।।।।।। eléctrica उनमें जितना डालो, उतन sigue.
गुरू तो कृपावान है ही, वह तो सदा कृपा कर ही रहok है, लेकिन तुम्हारे समझ में ही ना आये तो गुरू कर भी क demás सकता है? तुम्हाisiones कृपा तो बरसती रहेगी, तुम समझ पाओ तो भी ठीक ना समझ पाओं तो भी ठीक! इससे गुरू पर कोई फर्क पड़ता नहीं और ना ही पड़ेगा तुम गुरू को अश्रद demás दो, विष दो, कुछ भी अनाप-शनाप दो या करो उससे गुरू पर कोई फर्क पड़ता नहीं।।।।।।।।।।।।।।।। जब तुम में श्रद्धा आ जायेगी, तब तुम कृपा की महत्ता समझ पाओगे, फिर तुम्हें अपने में में आत्मग्ल्ल ल होगीर नेत नेत नी बह ज लेन लेन बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे बहे. दोष और स्वच्छ होकर पहुंच जाना, अपने गुरू के पास, लेकिन स्वच्छ, पवित्र होकर पहुंचना, आते तो तुम अब भी हो, हुये, लेकिन संस ज से दुखीatar.
एक बार तो तुम आओ! श्रद्धा से सर marca होकर, फिर तुम महसूस कर पाओगे, कि कृपा क्या होती है।।।।। तुम्हाisiones इसमें कोई संदेह नहीं है। पर तुम आते हो संदेह लेकर, संदेह में खतरा है, कि पता नहीं! - और सच है, पता तो है ही।।।।।।।।।।।।।।। जिसके साथ जा रहें हैं? जिसका हाथ पकड़ा है, वह हाथ पकड़ने योग्य भी है या नहीं, इसका भरोसा कैसे करें, अनुभव के बिना भरोसί gas " बड़ी असंभव सी क demás है बन्धु यह, इसीलिये अधिकतर लोग फेल हो जाते हैं।
सारा जीवन संदेह का शिक्षण है। जीवन भर हम संदेह सीखते हैं। अब लोगों को ऐसा प्रतीत होने लग mí विश्वास तो तब करना, जब संदेह की कोई जगह न रह जायेेे क्योंकि तभी तुम्हारा और मेरा प्रयास सफल हो सकथा थह संदेह में रहोगे तो कुछ भी पाना मुश्किल हो जायेगागाा
श्रद्धा केवल वे ही लोग कर पाते हैं, जो साहसी होहे जिन्होंने जीवन का सब ¢-देख देख लिया, सारे प्रपंच कर लिये, बेईमानी भी करके देख ली, चोरी भीatar ¡Adelante! आत्म चिंतन करना प्रagaendo. अपने भीतर की आँखे खोलो, पहचानो, समझो, फिर छलांग लगा दो गहरे सागर में!
Es obligatorio obtener Gurú Diksha del venerado Gurudev antes de realizar cualquier Sadhana o tomar cualquier otra Diksha. Por favor contactar Kailash Siddhashram, Jodhpur a Correo electrónico , Whatsapp, Teléfono or Enviar para obtener material de Sadhana consagrado, energizado y santificado por mantra, y orientación adicional,
Compartir vía: