हजारों साल से यह सूत्र आदमी को पता है और इन हजारों स mí करके, कभी ध्यान करके, कभी मंत्र साधना कर, कभी तंत्र साधना कर, कभी हठ त्याग कर, आनंद की प्रagaप के लिये सभी प्रयास क razón चुके।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. परन्तु जब मैं अपने शिषutar में चेतना में वह असफलता अपना प्रभुत्व जमा बैठी उसका कारण है अधर्म का प्रभुत tercoger
आप साधना से गुजरेंगे तो यह परिणाम घटते हैं इनकी आपको चिन्ता नहीं करनी है है न इनका विचार क da है है है न इनकी आक½ करनी है न हो हो है क क ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ज ये ये कि कि कि कि कि कि कि क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क क कि कि कि कि कि कि और मेरा अनुभव है कि जितनी जल्दी करोगे उतनी देर हो जायेगी, क्योंकि जल्दी करने वाला मन शांत हो ही नहीं सकता, जल्दी है तो अशांति का कारण है और हम सभी दैनिक चर्या में देखते है कि कभी कभी जल्दी में कैसी मुश्किल हो जाती है। रेल गाड़ी पकड़नी है और जल्दी में हैं, तो जो काisiones वस ender ही ही उल उल पहन लेते लेते हैं फिर निक sigue निक, फिर पहनों अब अब बटन ऊपर नीचे लग लग ज जguna हैं, फिर खोलों, फिर लगाओं, त cuál लग लग कि गुच नहीं गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच गुच कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि कि. में दूसरी तलाश करते है, वह भी नहीं लगती फिर तीसरी तलाशते है, इस प्रकार जलutar इसलिये जब छोटी-छोटी बातों में जल्दी करना देर का कारण बन जाता है, तो विर gaste
जीवन में ऊँचा उठना है और यदि नहीं उठते हैं तो यह जीवन व्यisiones दस सीढि़यों से नीचे उतरने में एक सैकण्ड लगता है, परन्तु दस सीढ़ी चढ़ने में आपको बीस सैकण्ड लगेगा। एक-एक सीढ़ी चढ़नी पड़ेगी, आपको निरन्तर-निरन्तर यही चिंतन करना पड़ेगा कि क्या मेरे अन्दर ऊपर उठने का भाव बन ह • य नहीं नहीं, सद्गुणों का हो हो ह timo है नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। मेरा जीवन कैसा व्यतीत हो रहा है-अपने आप में विश्लेषण करना जीवन की श्रेष्ठता है, महानता है और यह वह व्यक्ति कर सकता है जो अपने आप में बिल्कुल शिष्यवत बनकर गुरू से एकाकार होने का सामर्थ्य रखता है और शंकराचार्य कहते है, ऐसे ही व्यक्ति गुलाब के फूल बनते है, जो सही अर्थो में गुरू के लिये अपने आपको समर्पित कर देते।।।।।।।।।।
चिंतन में एक संघर्ष है अन्दर। जो भी आप चिंतन करते है, उसमें आप जूझते है, लड़ते है, एक आन्तरिक लड़ाई चलती।।।।।।।।।।।। आप अपने स sigueará फिर भी अगर हार जाते है, तो मान लेते हैं, लेकिन मानने में एक पीड़ा, एक कांटा चुभता रहता है।।। वह मानना मजबूरी का है उस मानने में कोई प्रफुल्लता घटित होती होती।।।।।।।। उसे मानने से आपका फूल खिलता नही है, मुर्झाता है। चिंतन और चिंता में कोई गुणात्मक फर्क नहीं सब चिंतन चिंत sigue क ही है, बेचैनी है उसमें छिपी हुई एक तनाव हैं क्योंकि एक भीतरी संघर्ष है, कलह है।।।।।।।।।।।।। मनन और चिंतन का फर्क है चिंतन शुरू होता है तर्क से, मनन शुरू होता है, संघû से से।।।।।।।।।
मानव ने अमृत प्रagaप्ति के लिये जितने भी प्रयास किये हैं, उन सब में वह असफल रहok है।।।।।।।।।।। केवल त्याग के द्वाisiones उसे पाने की शर्त एक ही है निष्ठा। अमृत प mí. इस जगत में ऐसा कुछ भी नहीं है शाश्वत है, इसलिये ब्रह्म ज्ञानियों यही यही खोज की जो शाश्वत है, जो सदैव है, जो सम समguna नहीं सकत सकत सकत सकत वह मguna भी वह। अटल है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है नहीं नहीं सकत सकत सकत सकत सकत वह त है।। अटल अटल. यदि हम sigue, सम्बन्ध इससे हो जाये हम भी उस जैसे ही हो जायेंगे। हम में कोई भेद ना होगा। हम निर्भय हो जायेंगे क्योंकि अब भय किस बात का जब हम अमृत हो गये है और अमृत तो शाश्वत होता है।।
हमार marca पूरा जीवन धन, पुत्र व पति-पत्नी पर ही आधारित हो गया है, मनुष्य धन कमाने की में में प्रतिसرgresguna में में र क। के के क क क क क क कenda. यदि उसे इस ब siguez । व्यक्ति जीवन भर धन इसीलिये एकत्र करता रहतok है कि धन से कुछ ऐसा मिल जायेगा, जिससे मैं सुरक्षित ¢ सकूंग सकूंग सम सम सम नहीं होग लेकिन धन कम व व व व भी भी ज ज ते सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत सकत. अतः धन से उस परम तत्व को पाना असंभव है। व्यक्ति ऐसा सोचते है कि उनका पुत्ág. लेकिन उस वutar. क्योंकि ऐसा तो तुम पीढी-दर-पीढी करते ही आ रहे होो तुम ही क्या और भी ऐसा ही कर रहे है, क्या इस प्रकार करने से तुम्हें अमृत्व की प्रaga हो हो जायेगी? ऐसा नहीं हो सकता अमृत तो केवल त्याग से ही मिल सा॥
प्रagaendoendo वह शक्ति है जिसमें मनुष्य पूर्णतया खो जाता है। उसे ब sigue. वह पूरा का पूरा स्वयं के अंदर उतर जाता है। यदि उसे प्रार्थना के समय बाहरी क्रियाकलापों का आभास होता है तो उस समय जो प्रार्थना तुम करते हो वह प्रार्थना नही, वह तो बाहर से की जाने वाली औपचारिकता मात्र है और यदि हम पूर्ण तन्मयता के साथ प्रार्थना करे तो हमारी यात्रा सन्मार्ग की ओर आरम्भ हो जाती है तथा हम अग्नि के समान हो जाते है अर्थात् ऊर्ध्वगत हमारी ऊर्जा हो जाती है।।।।।।।।। जैसा हम सोचेंगे वैसा ही हम बनेंगे।
हमने अग्नि को भी देखा है तो साक्षात् पानी को देख देख mí पानी का स्वभाव यही है कि वह नीचे से नीचे जगह को खोज लेत mí देखा तथा अनुभव किया कि अग्नि ही एक ऐसा देवता है जिसकी यात्रaga ऊर्ध्वगमन की यात्र है और मनुष्य भी केवल ऊर्वगमन की य यguna करके ही श् razón जल अपना अस्तित्व एकत्र हो कर बचाये ominó
जो स्वयं को असह siguez वह ही यह बात कह सकता है। हे अग्नि देव! मुझे उर्ध्वपात की ओर ले चल अर्थात् निरन्तर उच्चता की ओर, आकाश की ऊँचांइयों को सकूं सकूं भक्त आतgon. आपको सब कुछ पता है और आपके किये से ही अब कुछ हो सकता है ओर आप ही मुझे ले चलों ऊँचाईयों की ओर मेरे कर्मों को हे देव आप जानते हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं हैं eléctrica और मनुष्य को सद्माisiones सद्मारorar अतः अधोगमन क sigue.
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